कट्टरता के हिमशिखरों के विखंडन ने अब भारतीय जनता पार्टी के बेस-कैम्पों में निर्मित उन हवन-कुंडों को तबाह करना शुरू कर दिया है, जिनमें आहुति देकर इन दानव-प्रवृत्तियों का आव्हान किया गया था। नफरत की भीड़ भरी आंधी के साये भाजपा के दरवाजे पर भी दस्तक देने लगे हैं। सात-आठ …
Read More »नजरबंदी के बीच स्विस बैंक में कैसे पहुंचे 7000 करोड़ ?-उमेश त्रिवेदी
भारत के राजनीतिक अखाड़े में काले धन के बारे में स्विस बैंक की एक रिपोर्ट को लेकर राजनेताओ में एक मर्तबा फिर से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। देश के वित्तीय हालात कह रहे हैं कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी-सरकार के पांव फिसलने लगे हैं। वित्तीय प्रबंध के मामले में …
Read More »आपातकाल भारत की असली प्रेत-बाधा नहीं है – पंकज शर्मा
आपातकाल की 43वीं सालगिरह के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी, उनकी आंख के इशारे पर अपने हाथ खड़े कर देने वाले मंत्रियों और अमित शाह की पूरी भारतीय जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हिटलर घोषित कर दिया। चार साल से हिटलर से हो रही अपनी तुलना का यह प्रतिकार …
Read More »संत कबीर के प्रति भाजपा के ‘राजनीतिक-ममत्व’ के मायने – उमेश त्रिवेदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम की अयोध्या से तुलसी की राम-धुन के साथ बनारस में कबीर की निर्गुण भजनों की जुगलबंदी को सुनिश्चित करके उप्र में भाजपा ने लोकसभा चुनाव का आगाज कर दिया है। उप्र में भाजपा के चुनाव-प्रबंधों को अमलीजामा पहनाने के लिए मोदी ने मगहर में कई …
Read More »नायडूजी, इमरजेंसी के पाठ में इंदिरा की खूबियों को कैसे पढ़ेंगे? – उमेश त्रिवेदी
26 जून,1975 को लागू आपातकाल की अनगिन कही-अनकही, सही-गलत और कपोल-कल्पित कहानियों के राजनीतिक-संस्करणों के ताजा प्रकाशन और प्रसारण में ’हिटलर’ और ’औरंगजेब’ जैसे पात्रों की एन्ट्री मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व की मनोदशा और मानसिक दीवालियापन के इंडेक्स को रेखांकित करती है। अपने चार साल के शासनकाल और उपलब्धियों पर आत्ममुग्ध …
Read More »अपनों के रचे चक्रव्यूह को कैसे भेद पाएंगे ‘अजय’ – अरुण पटेल
मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ‘राहुल भैया’ जब-जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं तब-तब यह देखने में आया है कि उनकी टांग खींचने में उनकी अपनी पार्टी के लोग या उनके परिवार के सदस्य ही उनके इर्द-गिर्द एक चक्रव्यूह बनाकर सामने …
Read More »लोकतंत्र को सेनानी नहीं, समन्वयक चाहिए- पंकज शर्मा
इन दिनों तीन सवाल हर जगह पूछे जा रहे हैं। एक, क्या अगले लोकसभा चुनाव के बाद नरेंद्र मोदी फिर प्रधानमंत्री बन पाएंगे? दो, क्या समूचा विपक्ष एकजुट हो पाएगा? तीन, क्या विपक्षी गठबंधन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने को तैयार होगा? इन सवालों के जवाब तलाशना आसान भी है …
Read More »क्या मतलब ऐसी सरकार का, जो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है? – उमेश त्रिवेदी
जनता को यह सवाल शिद्दत से पूछना चाहिए कि ‘आखिर मतलब क्या है ऐसी ’सरकार’ का, जिसकी कोई सुनवाई नहीं होती है और मतलब क्या ऐसी ’सरकार’ का, जो कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है’? प्रश्न का पूर्वार्ध दिल्ली की ’केजरीवाल-सरकार’ की ओर मुखातिब है, जबकि उत्तरार्ध केन्द्र की …
Read More »‘किलिंग इंस्टिंक्ट’ पैदा करना कमलनाथ के लिए बड़ी चुनौती – अरुण पटेल
कांग्रेस आलाकमान ने इस उम्मीद के भरोसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ को बतौर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष यह जिम्मेदारी सौंपी है कि डेढ़ दशक से चला आ रहा कांग्रेस का सत्ता से वनवास मध्यप्रदेश में समाप्त हो। इसके लिए पार्टी ने उनके साथ ही एक युवा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी …
Read More »सिक्स पैक्स बनाम चौबीस पसली : गरीब बनाता इलाज-खर्च – उमेश त्रिवेदी
इन दिनों, जबकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित कार्पोरेट जगत की जानी मानी हस्तियां सोशल मीडिया पर एक-दूसरे को चुनौती देते हुए ’हम फिट तो इंडिया फिट’ अभियान के तहत पूरे भारत को स्वस्थ अथवा फिट बनाने में जुटी हैं, हिंदी के महाकवि पंडित सूर्यकांत निराला की पचास-साठ साल पुरानी दो …
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