
भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक साम्राज्य रिलायंस इंडस्ट्री के मालिक मुकेश अंबानी भले ही दुनिया के चंद सबसे बड़े धनकुबेरों में शुमार हों, लेकिन सोशल क्रेडिबिलिटी अथवा सामाजिक-विश्वसनीयता के कुल जमा खजाने के मामले में वो रतन टाटा अथवा अजीम प्रेमजी जैसे उनसे उन्नीसे उद्योगपतियों से पीछे हैं। शायद इसीलिए लोगों को यह बात आसानी से समझ में नही आ पा रही है कि मुकेश अंबानी की जियो इंस्टीट्यूट को अस्तित्व में आने से पहले ही देश के छह प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थानों के साथ ‘इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस’ की सूची में क्यों और कैसे शामिल किया गया है? मोदी-सरकार के मानव संसधान मंत्रालय ने आयआयटी दिल्ली, मुंबई और बिट्स, पिलानी जैसे संस्थानों के साथ इसका नाम रखा है।
राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रो में इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया जा रहा है कि जब निजी क्षेत्र के प्रतिष्ठित संस्थान पहले से ही मौजूद हैं तो एक कागजी संस्थान को उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा देने की मेहरबानी मोदी-सरकार क्यों कर रही है? भारत सरकार के उच्च शिक्षा सचिव आर. सुब्रमण्यम का कहना है कि जब जियो इंस्टीट्यूट उत्कृष्ट संस्थान के लिए जरूरी कसौटियों और अहर्ताओ को पूरा कर रहा है, तो इसे क्यों नहीं चुना जाना चाहिए? मकसद विश्वस्तरीय संस्थान को स्थापित करने के लिए सर्वश्रेष्ठ को आमंत्रित करना है और अगर किसी नए व्यक्ति के पास इस मकसद के लिए पैसा और अन्य संस्थान हैं, तो कोई वजह नहीं है कि उसे प्रोत्साहित नहीं किया जाए? भारत सरकार के शिक्षा सचिव ने मुकेश अंबानी को प्रोत्साहित करने के कारणों का खुलासा कर दिया है, जिसके मायने साफ हैं कि सब लोगों को समझना चाहिए कि अंबानी साहब इतने ताकतवर हैं कि उनका संस्थान इंस्टिट्यूशन ऑफ एमिनेंस से कम हो ही नहीं सकता…।
तर्कों की हकीकत यह है कि अंबानी की रिलायंस फाउण्डेशन प्रोजेक्ट में 9500 करोड़ रुपए निवेश करेगी। यह राशि आकर्षक है और दुनिया के पांच सौ विश्वविद्यालयों की सर्वश्रेष्ठ फेकल्टीज को अपने ‘मैगनेटिक-फील्ड’ में खींचने का सामर्थ्य ऱखती है। फाउण्डेशन के संसाधनों की जुगाड़ पर शंका की गुंजाइश नहीं है, लेकिन आशंकाएं उन मकसदों को घेरती हैं, जो शिक्षा की पवित्रता से जुड़े हैं। उन मकसदों के कुरेदने पर पहला सवाल यही उभरता है कि रिलायंस समूह के मन में शिक्षा के क्षेत्र में दाखिल होने के अरमान एकाएक क्यों जाग उठे हैं ? शिक्षा के क्षेत्र में मुकेश अंबानी की प्रविष्टि को सहजता से नहीं लिया जाएगा। मौजूदा समय में शिक्षा के घोर व्यवसायीकरण का दौर है। ज्यादातर शैक्षणिक संस्थानों का स्वरूप व्यावसायिक होता जा रहा है, इसके बावजूद शिक्षा का क्षेत्र एक अलग तरह की प्रतिबध्दता और सेवा-भाव मांगता है, शिक्षा को पूरी तरह व्यवसाय में परिवर्तित करना सामाजिक सरोकारों से बड़ा खिलवाड़ है। देश के शिक्षा के क्षेत्र में रिलायंस की यह दस्तक सामाजिक सरोकारों के कौन से पहलू को एड्रेस करने वाली है, यह खुलासा रिलायंस समूह ने नहीं किया है।
ज्यादातर लोगों की मान्यता है कि रिलायंस के लिए उसके व्यासायिक हित ही सर्वोपरि होते हैं। उसकी सामाजिक सेवा के दायरे केन्द्र सरकार व्दारा आरोपित सोशल ‘कार्पोरेट रिस्पॉन्सबिलिटी’ के अंतर्गत जमा पैसा के वारे-न्यारे तक ही सीमित रहे हैं। मंदिरों की पूजा अर्चना के अलावा सामाजिक सेवा की लंबी परम्परा के किस्से रिलायंस समूह के साथ सुनने को नहीं मिलते हैं। पेज थ्री पर हेड-लाइन्स बनने वाले सेवा के आख्यान अंबानी समूह के इर्दगिर्द जरूर सुनाई पड़ते रहे हैं। उनके सेवा-अवदान में मुंबई में कोकिला बेन हास्पिटल गिना जाता है, जहां पर इलाज कराना सबके बूते का नहीं है। खेल के क्षेत्र में अंबानी समूह ने मुंबई इंडियंस के नाम पर आयपीएल टीम का गठन किया है, जिसके सहारे वो करोड़ों रुपये बटोरता है।
जियो इंस्टीट्यूट को सर्वोत्कृष्ट संस्थान का दर्जा मिलने के मायने यह हैं कि उन्हें हर प्रकार की स्वायत्तता हासिल होगी। याने वो खुलकर शिक्षा का व्यवसाय कर सकेंगे। वो अपने हिसाब से फीस का निर्धारण कर सकेंगे। विदेशी संस्थान से तालमेल के लिए सरकारी अनुमति की जरूरत नहीं होगी। पाठ्यक्रम निर्धारित कर सकेंगे। यह सुविधा अन्य संस्थानों को आसानी से हासिल नहीं होती है।
कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों का आरोप है कि जो संस्थान खुला ही नहीं है, उसे उत्कृष्ट संस्थान का दर्जा कैसे मिल गया? प्रधानमंत्री मोदी मुकेश अंबानी से अपनी दोस्ती निबाह रहे हैं। माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी का कहना है कि जियो इंस्टीट्यूट को उत्कृष्ट संस्थान बनाना उद्योगपतियों की कर्जमाफी का नमूना है। समाजवादी पार्टी ने कहा है कि जो प्रधानमंत्री मोदी पहले मुकेश अंबानी के लिए जियो का विज्ञापन कर चुके हैं, उनके व्दारा अंबानी को उत्कृष्ट संस्थान भेंट दिया जाना कतई आश्चर्यजनक नहीं है। यह मोदी के कार्पोरेट रुझान का प्रतीक है।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 11 जुलाई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।
 CG News | Chhattisgarh News Hindi News Updates from Chattisgarh for India
CG News | Chhattisgarh News Hindi News Updates from Chattisgarh for India
				 
			 
						
					 
						
					