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इंदिराजी की वसीयत के साये में गाढ़ी होती राजनीतिक-नफरत – उमेश त्रिवेदी

चौबीसों घंटे एक हजार कमांडो के सुरक्षा घेरे में रहने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह बयान गौरतलब है कि ’कांग्रेस को मुझसे इतनी नफरत हो गई है कि वो मुझे मारने तक के सपने देखने लगे हैं’। मोदी ने कांग्रेस पर यह आरोप दो दिन पहले बुधवार को इटारसी में आयोजित भाजपा की चुनावी-रैली में लगाया था। मोदी की सुरक्षा में विभिन्न घेरों के तहत एक हजार से ज्यादा कमांडो तैनात रहते हैं। प्रधानमंत्री के रेसकोर्स रोड स्थित आवास पर एसपीजी के 500 से ज्यादा कमांडो चौकसी करते हैं। विदेश यात्रा के वक्त उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी एयर फोर्स की होती है। नरेन्द्र मोदी को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से दोगुना सुरक्षा प्राप्त है।

विशेषज्ञ कहते हैं कि कड़े सुरक्षा घेरे में रहने वाले प्रधानमंत्री मोदी के आसपास परिन्दे भी पंख नहीं फड़फड़ा सकते हैं। सवाल यह है कि कड़ी सुरक्षा-व्यवस्था के बावजूद मोदी अक्सर खुद के बारे में ऐसी बयानबाजी क्यों करते रहते हैं? क्या उनकी इस बयानबाजी को महज जुमलेबाजी मान कर नजरअंदाज कर देना चाहिए अथवा उसकी गंभीरता का विश्‍लेषण करना चाहिए? उनके राजनीतिक मनोविज्ञान की मीमांसा होना चाहिए कि उनकी चिंतन धाराओं में कितनी स्याही घुली हुई है?

मोदी के पहले भी देश में पंद्रह प्रधानमंत्री हो चुके हैं। इनमें लालबहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी ने पाकिस्तान के खिलाफ बाकायदा युद्ध लड़े थे और पाकिस्तान को जबरदस्त शिकस्त दी थी। इंदिरा गांधी ने तो खालिस्तान के आतंकवादियों को सबक सिखाया था। इसका खमियाजा इंदिराजी को अपना जीवन देकर चुकाना पड़ा था। राजीव गांधी ने लिट्टे के खिलाफ सैन्य-कार्रवाई करके तमिल- आतंकियों की नाराजी मोल ली थी, जिसका खमियाजा उन्हें अपनी जिंदगी से चुकाना पड़ा था। अटलबिहारी वाजपेयी के नाम कारगिल की लड़ाई दर्ज है।

नरेन्द्र मोदी के पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक रूप से खुद को खतरे में बताकर जनता की सहानुभूति बटोरने का प्रयास नहीं किया था। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के उदाहरण सामने हैं।  इन दोनों नेताओं को पता था कि उनके नाम आतंवादियों की हिट-लिस्ट में है। इंदिरा गांधी की सिक्यूरिटी चाहती थी कि उनकी रक्षा के लिए तैनात सिख-सुरक्षाकर्मियों को हटा लिया जाए। लेकिन इंदिराजी ने यह कह कर उसका प्रस्ताव ठुकरा दिया था कि इससे देश में अच्छा संदेश नहीं जाएगा। दिल्ली के सफदरजंग स्थित इंदिरा गांधी स्मारक में इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद उनके दस्तावेजों में उनके खयालातों को व्यक्त करने वाला एक बेतारीख हस्तलिखित दस्तावेज मिला है, जो उनकी राष्ट्रभक्ति को मार्मिक ढंग से रेखांकित करता है।

इंदिराजी ने इस दस्तावेज में लिखा है कि- ’’आज मृत्यु मेरे चिंतन से दूर है। मेरे मन की शांति और समचित्तता एक वसीयत के रूप में कुछ लिखने के लिए कह रही है।…अगर मेरी हत्या हो जाती है, जैसा कि कुछेक की आशंका है और कुछ लोग इसके लिए साजिश कर रहे हैं, तो हिंसा हत्यारे के मन में और कर्म में होगी, मेरे मरण में नहीं…क्योंकि कोई भी नफरत चाहे वह कितनी ही गाढ़ी हो, अपने देश और अपने देशवासियों के प्रति मेरे प्यार को डस नहीं सकती है, कोई भी ताकत इतनी बड़ी ताकत नहीं है, जो मुझे अपने लक्ष्य से हटा सके, और इस देश को आगे, और आगे ले जाने की मेरी कोशिशों को नाकाम कर सके।’’  

इंदिराजी आगे लिखती हैं- ’’एक कवि ने अपनी प्रेमिका के बारे में लिखा- ’इतना सब कुछ तुम में, तुम जो मेरे पास, कैसे कहूं कि कुछ नहीं’। भारत के प्रति मेरी भावना यही है। मैं यह बात सोच भी नहीं सकती कि कोई भारतीय हो और उसे इस बात का गर्व न हो, अपनी सामाजिक परम्परा के विविध और समृद्ध रंगरूप पर, लोगों की विराट अन्त:शक्ति पर, हर चुनौती का सामना करने की योग्यता पर, उसकी दृढ़ निष्ठा पर, झांकती हुई गरीबी और कठिनाइयों के बीच फूटती हुई हंसी पर’’

मोदी के ऐसे बेबुनियाद बयानों के राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट हैं कि वो समाज के विभिन्न तबकों के बीच नफरत की सियासत करके वोटों की फसल काटना चाहते हैं। भारत के राजनीतिक दलों के बीच जबरदस्त राजनीतिक स्पर्धा के बावजूद कभी भी इतनी नफरत नजर नहीं आई कि वो एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं। चुनाव में हार-जीत के बाद देश मे सत्ता-हस्तांतरण का इतिहास काफी सुनहरा रहा है। देश के पुराने पंद्रह प्रधानमंत्रियों में से किसी ने भी कुर्सी छोड़ते वक्त उफ तक नहीं की है। लेकिन मौजूदा लोकसभा चुनाव में हेट-कैम्पेन की पराकाष्ठा दहशत पैदा करती है…।

 

सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 03 मई के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।