
रायपुर 12 सितम्बर।छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने ‘‘शून्य बजट – प्राकृतिक खेती’’ की अवधारणा को केवल किसानों बल्कि देश और समाज के लिए भी कल्याणकारी बताया है।
श्री अग्रवाल ने यहां कृषि महाविद्यालय, रायपुर के सभागार में कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा ‘‘शून्य बजट-प्राकृतिक कृषि’’ पर आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कहा कि रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाओं आदि के उपयोग से कृषि की लागत बढ़ने से खेती अब कम लाभकारी व्यवसाय बनती जा रही है।‘‘शून्य बजट-प्राकृतिक कृषि’’ ऐसी तकनीक है जिसमें कृषि करने के लिए न किसी रासायनिक उर्वरक का उपयोग किया जाता है और ना ही बाजार से कीटनाशक दवाएं खरीदने की जरूरत पड़ती है।
श्री अग्रवाल ने इस पद्धति के आविष्कारक पद्मश्री श्री सुभाष पालेकर के प्रति आभार व्यक्त किया और घोषणा की कि छत्तीसगढ़ में कृषि विभाग, बीज निगम और कृषि विज्ञान केन्द्रों के प्रक्षेत्रों में पांच-पांच एकड़ क्षेत्र में ‘‘शून्य बजट-प्राकृतिक कृषि’’ प्रारंभ की जाएगी। कृषि मंत्री ने कहा कि छत्तीसगढ़ के 75 प्रतिशत से अधिक किसान सीमान्त या छोटे किसान हैं, जिनकी जोत का आकार छोटा होने के साथ ही कृषि में निवेश की सीमित क्षमता है। ऐसे किसानों के लिए महंगे संसाधनों वाली खेती कर पाना संभवन नहीं है। ऐसी स्थिति में शून्य बजट-प्राकृतिक खेती एक अच्छा विकल्प है। यह खेतों के साथ-साथ मानव और पशु स्वास्थय तथा पर्यावरण के लिए भी सुरक्षित पद्धति है।
शून्य बजट-प्राकृतिक कृषि अवधारण के प्रवर्तक पद्मश्री सुभाष पालेकर ने कहा कि रासायनिक खेती में अधिक लागत आती है, इससे खेत खराब होते हैं और मानव, पशुओं तथा पर्यावरण के स्वास्थय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में काम करने के दौरान उन्होंने पाया कि जंगलों में एक स्व-विकसित, स्वयं पोषित और पूरी तरह से आत्म निर्भर प्राकृतिक व्यवस्था विद्यमान है। उस पारिस्थितिकी तंत्र में वनस्पतियों का बेहतर विकास होता है। उन्होंने इन प्राकृतिक प्रक्रियाओं का अपने खेतों पर परीक्षण कर शून्य बजट-प्राकृतिक कृषि की पद्धति विकसित की है।
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