पिछले दिनों फेसबुक और उससे जुड़े व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम आदि का सर्वर लगभग 10-12 घंटे तक बंद रहा। ऐसी स्थितियां यदा कदा पहले भी आई, परन्तु इस बार के इस सर्वर डाऊन को तकनीकी फेल्योर के अलावा फेसबुक कंपनी के भीतर पनप रहे आंतरिक असंतोष से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
यह एक महत्वपूर्ण घटना है कि फेसबुक में काम करने वाले और फेसबुक के लिये शोध करने वाले लगभग एक दर्जन कर्मचारियों और अधिकारियों ने स्वतः यह शिकायत की है कि इंस्टाग्राम के माध्यम से बच्चों के लिये वैश्विक रैकिट आदि अनेक कार्यक्रमों में जिस प्रकार की जानकारियां या तकनीकी भाषा में कन्टेन्ट (उत्पाद) परोसा जा रहा है, उससे बच्चों व युवकों में अवसाद, अपराध, हिंसा और यौन हिंसा की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। अपने अंदर से ही उठे इस असंतोष पर पर्दा डालते हुये स्वतः फेसबुक ने एक जाँच कमेटी बनाई थी और जाँच शुरू हुई, परन्तु इस जाँच की रिपोर्ट को दबा दिया गया। मार्क जुकरबर्ग जो दुनिया के इंटरनेट क्षेत्र के एक सफलतम व्यक्ति माने जाते हैं, जिन्होंने जमीन से आसमान तक की यात्रा की है, और इंटरनेट के इन तथाकथित उत्पादकों के माध्यम से अकूत संपत्ति कमाई है। वह कुछ समय पहले तक दुनिया के नवयुवकों विशेषकर उन युवकों के लिए आदर्श एवं प्रेरणास्रोत थे जो नये उद्यमी बनना चाहते है, और किसी भी प्रकार से कमाई करना चाहते हैं।
निसंदेह फेसबुक और उसके सह उत्पाद इंस्टाग्राम, किट्स मैसेज रील ब्यू, आदि में विज्ञापन के माध्यम से कमाने के लिए एक समूची युवा पीढ़ी को मानसिक रूप से नष्ट किया जा रहा है। पिछले दिनों दुनिया में जो यौन हिंसा, सामूहिक बलात्कार, छात्रों व बच्चों द्वारा स्कूल में हिंसा को जो बढ़ावा मिला उसके पीछे भी फेसबुक की बड़ी भूमिका है। यद्यपि यह भी सच है कि, पिछले तीन दशकों की फिल्मों ने भी इन विकृतियों को पैदा करने में अहम् भूमिका अदा की है। परन्तु फिल्मों की पहुंच फेसबुक की तुलना में बहुत सीमित है। आज बहुत सफल मानी जाने वाली फिल्म भी बहुत मुश्किल से लाखों या करोड़ के नीचे रहती हैं, परन्तु फेसबुक और उनके उत्पाद हर क्षण दुनिया की लगभग चार अरब से अधिक आबादी तक पहुंच रहे हैं, और उनके मन मस्तिष्क को विकृत कर रहे हैं। दूसरा एक और भी फर्क है कि फिल्म का प्रभाव कम समय तक रहता है, क्योंकि उसकी बार-बार पुर्नरावृत्ति नहीं होती। कुछ अपवाद हो सकते हैं, जहां कुछ लोग कुछ गंदी फिल्मों को बार-बार देखते हों। हालांकि उनके लिये भी ऐसी फिल्मों का माध्यम आजकल इंटरनेट है, परन्तु फेसबुक तो 24 घंटे व पूरा साल एक क्षण भी छोड़े बगैर लगातार ऐसी चीजें परोस रहा है और उनसे जहां एक तरफ विज्ञापन में भारी पैसा कमा रहा है और दूसरी तरफ दिमागों में ज़हर भर रहा है। इंटरनेट, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि का इस्तेमाल कर आजकल बहुत से ऐसे समूह बने है, जो निरंतर झूठ फैला रहे हैं, इतिहास को विकृत कर रहे हैं।
समाज को विभाजित करने वाले, जातियों व धर्मों के मुद्दों को हवा देकर पैदा करने वाले, समाचार इन समूहों के द्वारा बना-बना कर डाले जाते हैं। समाज के आदर्श महान लोगों की चरित्र हत्या का काम भी ऐसे समूहों द्वारा बेखूबी किया जा रहा है। शायद इस तकनीकी हमले का सबसे बड़ा शिकार व प्रयोग भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के खिलाफ किया जा रहा है, आम तौर पर युवा व अल्पव्यस्क पीढ़ी, ग्रामीण समाज व क्षेत्र यह मानते हैं कि मीडिया या सोशल मीडिया पर जो आ गया वह पूरा सही है। और न केवल उस पर विश्वास करने लगते बल्कि जाने अनजाने उस झूठ को फैलाने के सहभागी भी बन जाते हैं, अब इंटरनेट के माध्यम से ही फेक न्यूज़ पकड़ने वाले समूहों का भी गठन हुआ है, जो ऐसे समाचारों की सच्चाई या झूठ को परीक्षण कर बताते है, परन्तु अभी इनकी अपलब्धता या इनका प्रयोग बड़े पैमाने पर नहीं हुआ और जब तक एक झूठ वायरल हो जाता है, जो कि कुछ ही क्षणों में करोड़ों लोगों तक पहुंच जाता है और उनके मस्तिष्क पर प्रभाव जमा देता है। फेक न्यूज़ को अगर फेक न्यूज़ जानने वाले समूह पकड़ भी लें और जब तक वह उस पर कुछ लिखें तब तक तीर तो चलकर घाव कर चुका होता है। फिर जो लोग जाने – अनजाने उस झूठ को वायरल करने में सहभागी बनते हैं, वे स्वतः उसे झूठा पाये जाने के बाद भी उसे प्रचारित करने का साहस नहीं करते, शायद वह सोचते है कि इससे वह गलत साबित होंगे। यद्यपि यह उनका नैतिक व वैधानिक दायित्व होता है कि वह सत्य जानने के बाद उसका खुलासा करें।
फेसबुक आदि बीच-बीच में बाजार के विज्ञापन चलाते हैं क्योंकि यह उनका व्यवसाय है, और अपनी प्रसार संख्या को बढ़ाने के लिये वह बीच-बीच में हिंसा, यौन कुंठा, यौन हिंसा के वीडियो आदि चलाते हैं, स्वाभाविक है कि वह जब इन युवकों की नज़रों से गुजरते हैं तो वे उन्हें उनके अव्यस्क मन को देखने के बाद प्रभावित करते हैं। इतना ही नहीं बीच-बीच में फेसबुक उन्हें सलाह देते हुये भी ऐसे कुत्सित या मनोविकारी रील या वीडियों देखने की सलाह देते हैं कि यह आपके देखने योग्य है।
अब इन मनोवृत्तियों का परिणाम इस युवा पीढ़ी पर क्या व कैसा पड़ता है यह सोचनीय है। हिंसा और यौन भूख की आकांक्षाओं को इतना उत्तेजित करता है कि उन्हें देखते-देखते कुछ समय के बाद वे मनोविकारों से बीमार हो जाते हैं और अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं। इस अवसाद से आत्महत्याओं की संख्या बढ़ रही है। प्रसिद्ध अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने पिछले दिनों कई लेखों की एक सीरीज चलाई थी उसमें बताया था कि फेसबुक के इन उत्पादकों, सेवाओें से समाज में कितना नुकसान हो रहा है, तथा कम्पनी के अंदरूनी शोध पत्रों में इसके प्रमाण भी मिले है। एक शोधपत्र के अनुसार तो मानसिक रोग की परेशानियों से जूझ रहे युवा कहते हैं इंस्टाग्राम से उनकी हालत खराब हो जाती है। इंस्टाग्राम नादान बच्चियों में भी हीनता व अपराध बोध पैदा कर रहा है और वे अपने आपको खराब महसूस करने लगती है तथा कई बार आत्महत्या का रास्ता चुन लेती है। फेसबुक के प्रमुख जुकरबर्ग, सी.ई.ओ. सेन्डवर्ग, इंस्टाग्राम के प्रमुख एडम मौसेरी आदि इन सवालों से सार्वजनिक रूप से बच रहे हैं, यहाँ तक की अमेरिका के सांसदों ने भी फेसबुक के ग्लोबल सेफ्टी प्रमुख से कई घंटे तक पूछताछ की है। इंस्टाग्राम के 3 प्रतिशत उपभोक्ताओं ने बकायदा स्वीकार किया है कि, इंस्टाग्राम से उनके मन में अवसाद, चिंता, बैचेनी स्वयं को नुकसान पहुंचाने की भावना जैसे नकारात्मक विचार आये हैं।
इसका एक परिणाम और भी निकल कर आ रहा है। अमेरिका व दुनिया के तथाकथित बड़े-बड़े उच्च शिक्षण संस्थाओ में असर स्पष्ट नज़र आ रहा है। अमेरिकी शिक्षण संस्थाओं के छात्रों के क्लबों में अराजकता का माहौल है, और इससे छात्राओं के साथ दुष्कर्म व छेड़छाड़ के मामले बढ़े है। यहां तक कि लिंकन यूनिवर्सिटी के छात्रों ने इन क्लबों जिन्हें फ्रेटरनिटी या फ्रेटरनिटी हाऊस कहा जाता के सामने प्रदर्शन किये है और ऐसे कार्यक्रमों पर रोक लगाने की माँग की है। न्यूयार्क टाइम्स के अनुसार एक शोध में बताया गया है कि विश्वविद्यालय व कालेजों के केम्पस में 25 प्रतिशत से अधिक स्नातक कक्षाओं की छात्राओं और यहां तक की छात्रों को भी यौन हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। फेसबुक की पूर्व प्रोडक्ट मैनेजर फ्रांसिंग हौगन ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि फेसबुक ने बार-बार निजता व सुरक्षा को दरकिनार कर अपना मुनाफा वाले रास्तों को चुना है और यह जानते हुए कि यह इंस्टाग्राम किशोरमय बच्चों पर बुरा असर डाल रहे हैं, इसे रोका नहीं। अमेरिका की सीनेट में, फेसबुक के पूर्व डेटा वैज्ञानिक फ्रांसिस होगेन ने 3 घंटे की गवाही में कहा कि फेसबुक बच्चों और लोकतंत्र के लिये बड़ा खतरा है। पर फेसबुक कोई कार्यवाही नहीं करती। उल्टे बच्चों को फेसबुक इंस्टाग्राम का नसेड़ी भी बनाने के लिये ऐसे कार्यक्रम परोसता है जो खतरनाक है।
भारत, रंगीन दुनिया या तीसरी दुनिया के देश भी अब इससे अछूते नहीं। यद्यपि इन देशों में अमेरिका के समान अभी कोई प्रमाणिक अध्ययन नहीं हुए है, परन्तु इंस्टाग्राम आदि के प्रभाव तो पड़ ही रहे हैं। मेरे फेसबुक पर पिछले दिनों इस प्रकार के अनेकों गंदे विज्ञापन और समाचार आ रहे थे। मैंने फेसबुक पर ही इसकी शिकायत लिखी, मित्रों से भी अनुरोध किया, उसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे विज्ञापनों को बंद करने के नाम पर मेरे उस फेसबुक एकाउन्ट को ही बंद कर दिया गया। और वह पुराना खाता आज भी बंद ही है। यानी अपराध कोई और करे पर दण्ड शिकायतकर्ता को भी मिलेगा। अमेरिका व यूरोप जैसे देश ऐसी घटनाओं को शायद झेल जायें परन्तु भारत जैसे देशों के लिए भविष्य चिन्ताजनक है। कितना अच्छा हुआ होता कि, प्रधानमंत्री श्री मोदी जी जब संयुक्त राष्ट्र को संबोधित करने के लिए अमेरिका गये थे तो वे यू.एन.ओ. में इस चिंता को व्यक्त करते और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन से बातचीत में उन्हें भी सहभागी बनाते। शायद यह देश और दुनियां की बड़ी सेवा होती।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।