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संसद ने आपराधिक कानूनों को बदलने वाले तीनों विधेयकों को दी मंजूरी  

नई दिल्ली 21 दिसम्बर।संसद में भारतीय न्याय द्वितीय संहिता 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा द्वितीय संहिता 2023 और भारतीय साक्ष्य द्वितीय विधेयक 2023 पारित हो गये हैं।

   राज्‍यसभा ने इन तीनों विधेयकों को आज मंजूरी दी। लोकसभा इसे पहले ही स्वीकृति दे चुकी है। भारतीय न्याय द्वितीय संहिता 2023, भारतीय दण्‍ड संहिता 1860 का स्थान लेगा। यह देश में फौजदारी अपराधों पर प्रमुख कानून है।नये विधेयक में सामुदायिक सेवा को सजा के रूप में शामिल किया गया है।

   भारतीय नागरिक सुरक्षा द्वितीय सं‍हिता 2023, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता 1973 का स्थान लेगा। इसमें गिरफ्तारी, अभियोग और जमानत की प्रक्रिया के प्रावधान हैं।भारतीय साक्ष्य द्वितीय विधेयक 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 का स्थान लेगा। अधिनियम में देश के न्‍यायालयों में साक्ष्‍यों की स्वीकार्यता से जुडे प्रावधान हैं। यह सभी दीवानी और फौजदारी मुकदमों पर लागू होंगे।

   इन तीनों विधेयकों में एफ.आई.आर. से लेकर केस डायरी, आरोप पत्र और फैसले तक की सम्पूर्ण प्रक्रिया को डिजिटल रूप में करने का प्रावधान है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने तीनों विधेयकों को राज्‍यसभा में प्रस्तुत किया। चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा के बृजलाल ने तीनों विधेयकों के विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया। उन्होंने इन तीनों विधेयकों को ऐतिहासिक और समय की मांग बताया।

   चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि भारतीय दण्‍ड संहिता, दण्‍ड प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के बाद ब्रिटिश शासन की सुरक्षा के लिए बनाये गये थे। उन्‍होंने कहा कि इनका उद्देश्‍य केवल ब्रिटिश शासन की सुरक्षा करना था क्योंकि भारतीय नागरिकों की सुरक्षा, सम्मान और मानव अधिकारों की सुरक्षा के लिए इनमें कोई प्रावधान नहीं था।

  श्री शाह ने कहा कि सरकार ने, न केवल इन पुरानों कानूनों का नाम बदला है बल्कि यह नये विधेयक सजा देने के बजाय न्याय दिलाने के उद्देश्‍य से लाये गये हैं।उन्‍होंने कहा कि इन नए कानूनों की आत्मा भारतीय है और पहली बार भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली भारत द्वारा, भारत के लिए और भारतीय संविधान में बनाए गए कानूनों से संचालित होगी।

   श्री शाह ने आशा व्यक्त की कि इन विधेयकों के लागू होने से एफ.आई.आर से लेकर फैसले तक की सभी प्रक्रिया ऑनलाइन हो जायेगी। भारत एक ऐसा देश बन जायेगा जिसमें आपराधिक न्याय प्रणाली में प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होगा। गृहमंत्री ने कहा कि नये आपराधिक कानूनों के लागू होने से तारीख पर तारीख देने की बजाय तीन वर्ष के अन्‍दर त्वरित न्‍याय देना सुनिश्चित होगा।

उन्‍होंने कहा कि सरकार ने राजद्रोह को भारतीय न्याय संहिता में देशद्रोह से बदल दिया है। गृहमंत्री ने कहा कि कोई भी देश के विरूद्ध नहीं बोल सकेगा और कोई उसके हितों को नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा। उन्‍होंने कहा कि इन कानूनों में महिलाओं और बच्‍चों की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान बनाये गए हैं।

  उन्‍होंने बताया कि इस सन्दर्भ में भारतीय न्याय संहिता में एक नया अध्याय लिखा गया है। इसके अन्तर्गत अट्ठारह साल से कम उम्र की महिला से दुष्कर्म करने पर आजीवन कारावास और मृत्‍यु दण्‍ड का प्रावधान किया गया है। उन्‍होंने कहा कि सामूहिक दुष्कर्म के मामलों में 20 साल की कैद या मृत्यु तक कारावास में रहने का प्रावधान है। 

   श्री शाह ने कहा कि पहली बार आपराधिक न्याय प्रणाली में आतंकवाद को परिभाषित किया है। उन्‍होंने कहा कि इन नए कानूनों में पहली बार संगठित अपराध को भी परिभाषित किया गया है। गृहमंत्री ने कहा कि गैर इरादतन हत्या मामले में अगर आरोप मामला दर्ज कराने पुलिस के पास जाता है और पीड़ित को उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाता है तो कम सजा का प्रावधान है। हिट एण्ड रन मामलों में दस साल की जेल का प्रावधान रखा गया है।

   गृहमंत्री ने कहा कि पुलिस को शिकायत दर्ज होने के तीन दिन के भीतर एफ.आई.आर दर्ज करनी होगी तथा तीन से सात वर्ष की सजा वाले मामलों में एफ.आई.आर. प्राथमिक जांच के बाद दर्ज की जायेगी। उन्‍होंने कहा कि अब हमने दुष्कर्म पीड़िता की चिकित्सा जांच रिपोर्ट को सीधे थाने भेजने तथा बिना किसी देरी के सात दिन के भीतर अदालत भेजने का प्रावधान किया है। उन्‍होंने बताया कि अब आरोप पत्र दाखिल करने की समय सीमा 90 दिन तय कर दी गई है, और इसके बाद जांच केवल अगले 90 दिनों तक की जा सकती है।

   उन्‍होंने बताया कि मजिस्ट्रेट को 14 दिन के भीतर मामले का संज्ञान लेना होगा और उसके बाद कार्रवाई शुरू की जायेगी। उन्‍होंने कहा कि न्यायाधीशों को मामले की समाप्ति के 45 दिन के भीतर फैसला देना होगा। इसके साथ ही फैसले और सजा के बीच केवल सात दिन का अन्तर होगा। दया याचिका सर्वोच्च न्यायालय में याचिका खारिज होने के 30 दिन के भीतर ही दायर की जा सकती है।