गुजरात दंगों के दौरान बिलकिस के साथ सामूहिक दुष्कर्म करने वाले 11 आरोपियों की रिहाई खारिज कर दी गई है। आपको बता दें कि गुजरात में वर्ष 2002 में दंगे के दौरान बिलकिस के साथ नृशंस सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। यहीं नहीं, बिलकिस के आंखों के सामने उसके परिवार के 7 लोगों की हत्या भी कर दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते वक्त क्या-क्या कहा?
- सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार के फैसले को रद्द किया और फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसा आदेश लेने के लिए राज्य सरकार बिल्कुल भी ‘सक्षम नहीं’ थी और फैसले को बिना दिमाग लगाए पारित कर दिए गए।
- न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया हैं।
- सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिका को सुनवाई योग्य मानते हुए पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार छूट का आदेश पारित करने के लिए उपयुक्त सरकार नहीं है।
- शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य, जहां किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वह दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया। दरअसल, मुंबई में CBI की एक विशेष अदालत ने इस मामले में 2008 में 11 आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी इस फैसले पर अपनी मुहर लगाई थी।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कानून के शासन का उल्लंघन हुआ है क्योंकि गुजरात सरकार ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया। पीठ ने 100 पन्नों से अधिक का फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य के छूट के आदेश रद्द किए जाने चाहिए
- शीर्ष अदालत ने एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को भी ‘अमान्य’ करार दिया, जिसमें गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने को कहा गया था।
- सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को अदालत के साथ धोखाधड़ी करार दिया और कहा कि इस अदालत के सामने फैक्ट छिपाए गए। 13 मई का आदेश सही नहीं था और इसे हम अमान्य मानते है।
- सु्प्रीम कोर्ट ने कहा, यह एक क्लासिक मामला जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल छूट देकर कानून के नियम का उल्लंघन करने के लिए किया गया था। बता दें कि सभी 11 दोषियों को गुजरात सरकार द्वारा छूट दी गई और 15 अगस्त, 2022 को रिहा कर दिया गया था।
- शीर्ष अदालत ने कहा कि सत्ता छीनकर कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है और 13 मई, 2022 के आदेश का इस्तेमाल शक्तियों को हड़पने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए किया गया है।
- शीर्ष अदालत ने बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
- शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था।
- पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या दोषियों के पास माफी मांगने का मौलिक अधिकार है।
- पहले की दलीलों के दौरान, शीर्ष अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक नहीं होना चाहिए और सुधार और समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को मिलना चाहिए।
- गुजरात सरकार द्वारा उन्हें दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा, सीपीआई (एम) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य जनहित याचिकाओं ने राहत को चुनौती दी है।