जून माह में जम्मू के भारतीय सैन्य अड्डे पर आतंकवादियों ने ड्रोन से हमला कर कई विस्फोट किये थे। यद्यपि इन विस्फोटो से कोई क्षति विशेष नहीं हुई परन्तु आतंकवादियों द्वारा भारत की सीमा पर इस नये प्रयोग को लेकर सैन्य अधिकारियों और सुरक्षा अधिकारियों में चिंता व्याप्त है। बताया गया है कि ये पाकिस्तानी आतंकवादी है, जिन्होंने पाक सीमा से ड्रोन को भारतीय सीमा और सुरक्षा स्थल पर प्रवेश कराया था।
चूंकि ड्रोन चालक विहीन विमान और आकार में भी छोटा होता है अतः इससे आतंकवादियों को जोखिम विहीन हमले करने का अवसर प्राप्त होता है। वैसे तो मेरी राय में यह कहना भी अभी मुमकिन नहीं है कि यह आतंकवादी हमला था या फिर पाकिस्तानी हुकूमत या पाक सेना का सुनियोजित प्रयास। अगर इसके पीछे सरकार और पाक सेना की भूमिका नहीं होती तो पाकिस्तानी सीमा से ड्रोन का प्रवेश संभव नहीं था। अगर इन आतंकवादियों को पाक हुकूमत और सेना का संरक्षण नहीं मिला होता तो ये ड्रोन भारतीय सीमा में प्रवेश ही नहीं कर सकते एवं पाक सीमा सुरक्षा बल ही इन्हें गिरा देता। यह आश्चर्यजनक है कि इस ड्रोन आतंकवाद के नये प्रयोग पर सैन्य क्षेत्रों में जो भी हलचल हुई हो परन्तु भारत के समाज में और विशेषतः राजनैतिक क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय या चिंताजनक पीड़ा देखने या सुनने में नज़र नहीं आई। इस गंभीर सवाल को जो राष्ट्र की सुरक्षा से संबंधित है हिन्दुस्तान की संसद में भी चर्चा या कोई स्थान नहीं मिला और हर दिन छोटे मोटे गैर जरूरी प्रश्नों पर खत्म हो जाने वाली संसद इतने बड़े राष्ट्रीय महत्व के प्रश्न पर अभी तक तो तटस्थ ही रही है।
जम्मू कश्मीर की इस सीमा उल्लंघन और विस्फोट के बाद दो तीन अन्य स्थानों पर भी विशेषतः पंजाब की सीमा में भी ड्रोन की घुसपैठ हुई है। यद्यपि वहां विस्फोट नहीं हुये परंतु संभव है कि ड्रोन के माध्यम से छोटे या गुप्तचरी कैमरे के द्वारा भारत की सुरक्षा सूचना प्राप्त की गई हो। और यह भी कम चिंता का विषय नहीं है। अगर ड्रोन भारतीय सीमा में इस आसानी से प्रवेश कर सकते है तो किसी दिन वे बड़े विस्फोट, आणविक, परमाणुविक माध्यम भी बन सकते है।
घुसपैठ तो देश में आतंकवादियों की पहले भी होती रही है परन्तु शारीरिक घुसपैठ उतनी चिंताजनक नहीं होती जितनी ड्रोन घुसपैठ। कारगिल में आतंकवादियों ने सशरीर घुसपैठ की थी जिसका कठिन परिस्थितियों में जमीनी मुकाबला भारतीय सुरक्षा बलों ने किया था, भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से भारी संख्या में अधिकारियों और सैन्य लोगों की मृत्यु को सहकर आतंकवादियों को न केवल रोका था बल्कि उन्हें पराजित भी किया था। वह तो उस समय अंतर्राष्ट्रीय दबाव में अटल जी की सरकार ने घुसपैठियों को स्पेसिफिक के नाम पर वापस जाने की सुविधा नहीं दी होती तो शायद वह एक नये इतिहास का आधार बनती। कारगिल घुसपैठियों के वे संदेश भी सेना के पास सुरक्षित होगे जिनमें वे अपने आकाओं को संदेश भेज रहे थे कि हमारा गोला बारूद खत्म हो चुका है और जान खतरे में है। अब दुनिया में युद्ध की मानव विहीन तकनीक सामने आयी है। जिसमें ड्रोन, यू.ए.बी. और गाईडिड मिसाइल शामिल है। ये तरीके मानवता को नष्ट करने के माध्यम बन सकते है। पिछले दिनों यमन में बैठकर उग्रवादियों ने सऊदी अरब के तेल संयंत्र उड़ा दिये थे। 14 सितम्बर 2019 को सऊदी अरब की आरामको तेल कंपनी पर ड्रोन हमला किया गया था जिससे ये दो बड़े तेल उत्पादक संयंत्र नष्ट हो गये थे और दुनिया का आधा तेल उत्पादन लगभग नष्ट हो गया था। जिसके परिणामस्वरूप दुनिया में कच्चे तेल का वितरण भी कम हुआ था और कच्चे तेल के दामों में एक दम आग लग गई थी। इस आतंकवादी हमले का कारण यमन के आतंकवादी संगठन ने यह बताया था कि सऊदी अरब यमन के गृह युद्ध में दखल दे रहा है। इस हमले में हूती उग्रवादी बड़ी संख्या में मारे गये। हूती उग्रवादियों के 10 ड्रोन के जरिये ड्रोन के हमले के बाद सऊदी अरब ने यमन के उग्रवादियों के अलावा ईरान को भी ड्रोन हमले का जिम्मेदार बताया था।
इस घटना के ठीक एक महीने बाद सितम्बर 2020 में अजर बैजान व आरमेनिया के बीच भी 44 दिन का लम्बा युद्ध हुआ था और इसमें भी ड्रोन यू.ए.वी. और मिसाइलों का व्यापक प्रयोग किया गया था। यद्यपि अजर बैजान और आरमेनिया के पास अणु और परमाणु हथियार नहीं थे वरना इस युद्ध का भविष्य क्या होता और उसका प्रभाव इन देशों के नष्ट होने के रूप में आता साथ ही इनके आसपास के 100 – 200 कि.मी. की परिधि में स्थित देशों के ऊपर भी प्रभाव पड़ता।
ड्रोन हमले इसलिये भी आतंकवादियों, नवयोद्धाओं देशों की पसंद है क्योंकि ड्रोन हमलो या यू.ए.बी. या मिसाइलों हमलों में मानवीय क्षति (हमला करने वाले) लगभग नहीं होती क्योंकि ये मानव रहित तकनीक के होते है। इनके निर्माण पर भी बहुत कम खर्च आता है, और इनको ले जाने वाले विमान पर तुलना में खर्च एक प्रतिशत से भी कम होता है। इतना ही नहीं ड्रोन हमले के लिये प्रशिक्षिण का खर्च भी सामान्य युद्ध, प्रशिक्षिण का 10 प्रतिशत से भी कम आता है, यानि ड्रोन युद्ध सस्ता और मारक युद्ध की तकनीक है। हो सकता है कि, हमारे देश के सांस्कृतिक बुद्धिजीवी यह कहकर खुश हो कि ड्रोन या मिसाइल इनका प्रयोग तो भारत, राम रावण युद्ध में या महाभारत में कर चुका है इसलिये हम ड्रोन या मिसाइल तकनीक में भी विश्व गुरू है।
परन्तु वे यह भूल जाते है कि ड्रोन हमले की व्यापक संभावनाओं की चपेट में आने वालों को ड्रोन या मिसाइल नहीं छोड़ती भले ही वह चाहे विश्व गुरू हो या विश्व चेला। राष्ट्रीय सुरक्षा के इस प्रश्न पर अभी तक संघ प्रमुख का कोई बयान या प्रतिक्रिया सुनने को नहीं मिली। यह आश्चर्यजनक भी है और यह भी कि ड्रोन कम ऊँचाई पर उड़ता है अतः रडार की पकड़ में नहीं आ पाते। अतः इसके लिये विशेष रडार तैयार करने होंगे।
अभी दो माह पूर्व फिलिस्तीन और इजराइल के बीच अल्पकालिक अघोषित युद्ध हुआ उसमें भी मिसाइल तकनीकी हथियारों का बड़े पैमाने पर प्रयोग हुआ यह तो इजराइल के सुरक्षा तंत्र की तैयारी और खूबी थी कि उन्होंने पहले ही ऐसी मिसाइल प्रतिरोधी क्षमता और रक्षा कवच विकसित कर लिया था जिससे फिलिस्तीन की ओर से आने वाली मिसाइलें फिलिस्तीन में ही नष्ट कर दी गई। इससे हमलावर को स्वतः उसकी क्षति को सहना पड़ा। परन्तु भारत अभी तक ऐसी कोई प्रतिरोधक प्रणाली विकसित नहीं कर सका है जिस प्रकार के प्रभावी रडार इजराइल द्वारा पहले से तैयार कर लिए गये। वैसे इस प्रकार के यंत्रों के भारत सैन्य सामग्री में विकसित होने की सूचना नहीं है।
हमें भूलना नहीं चाहिए कि जब तक मुकाबला जमीनी युद्ध का था या जिसे पारंपरिक युद्ध कहा जाता है उन तरीकों का या तब तक भारत पाकिस्तान से हर मामले में शक्तिशाली था। और यही कारण है कि कश्मीर में 1947 में कबाईली आक्रमण के समय, 1965 में, 1971 में और 2000 में सैन्य आक्रमण में भी भारत विजयी रहा। परंतु परमाणु परीक्षण के बाद अब भारत और पाक दोनों एक अर्थ में परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गये है। विश्व में संख्याबल या सैन्य बल अब बहुत मायने नहीं रखता, बल्कि तकनीक और हथियार की क्षमता निर्णायक होती है। पाकिस्तान एक अर्थ में तालिबानों का सप्लायर और उत्पादक देश भी है। मीडिया की सूचना के अनुसार पाकिस्तान द्वारा दस हज़ार तालिबानी लड़ाके अफगानिस्तान में तालिबानों की मदद के लिए भेजे गये हैं। एक तरफ ड्रोन, यू.एस.बी. मिसाइल और दूसरी तरफ पाक और अफगानिस्तान के हालात भारत के लिए सुरक्षा, विदेश नीति, अर्थ तीनों आधार पर गंभीर चिंता का विषय है। भारत का कई लाख करोड़ रूपया अफगानिस्तान में लगा है और यह सब ऐसे राष्ट्रीय महत्व के पक्ष है, जिन पर सरकार और संसद चिंता करे या न करे परंतु देश को चिंता करनी चाहिए।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।