(जन्मदिन 23 जुलाई पर विशेष) 1921 में संस्कृत विद्यालय बनारस पर धरना देते समय अनेक सत्याग्रहियों के साथ आजाद भी पकड़े गए थे। तब वह चन्द्र शेखर तिवारी हुआ करते थे। खरे घाट की अदालत में मुकदमा चला। नाम पूछने पर ” आजाद” बताया। पिता का नाम “स्वाधीन” घर का …
Read More »बेढब दौर के जनद्रोहियों की दास्तान-पंकज शर्मा
सवाल कांग्रेस का नहीं है, सवाल भारतीय जनता पार्टी का नहीं है, सवाल सचिन पायलट का नहीं है और सवाल अशोक गहलोत का भी नहीं है। सवाल यह है कि यह हो क्या रहा है, सवाल यह है कि यह हो क्यों रहा है, सवाल यह है कि यह हो …
Read More »कोरोना काल में आत्महत्याओं की ओर बढ़ता भारत – रघु ठाकुर
कोरोना महामारी के संक्रमण की चेन को काटने के लिए लगभग सारी दुनिया में लाकडाउन को कारगर तरीका माना गया।यद्यपि लाकडाउन से कोई विशेष लाभ हुआ हो आंकड़े ऐसा कोई संकेत नहीं करते परन्तु लाकडाउन से अन्य कई प्रकार की समस्याएँ भी हमारे देश में पैदा हुई है। कोरोना प्रभाव …
Read More »सरदार पटेल और जूनागढ़- राज खन्ना
जूनागढ़ ने सरदार पटेल की कश्मीर को लेकर सोच बदली। जूनागढ़ और हैदराबाद हिन्दू बहुल आबादी और मुस्लिम शासित रियासतें। कश्मीर मुस्लिम बहुल और हिन्दू शासक। 15 अगस्त 1947 तक इन तीनो रियासतों का मसला हल नही हो सका था। पटेल की प्राथमिकताओं में जूनागढ़ और हैदराबाद थे। पण्डित नेहरु …
Read More »चन्द्रशेखर की सरकार क्यों बनी ; क्यों गिरी ?- राज खन्ना
(पुण्यतिथि 08 जुलाई पर विशेष) चन्द्रशेखर की पहचान उनके बेबाक- बेलौस लहजे से जुड़ी हुई थी। एक निर्भीक-निडर नेता जिसकी अपनी शैली थी और अपना अंदाज। पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और फिर कांग्रेस में रहते हुए राजनीतिक लाभ-हानि का जोड़-घटाव उन्हें इस अंदाज़ से अलग नही कर पाया। जो …
Read More »नई भाजपा का ‘गांधी’, ‘समाजवादी’ नहीं रहा, वह सिर्फ ‘बनिया’ हैं…- उमेश त्रिवेदी
भाजपा के राजनीतिक आख्यानों में सौ-सवा सौ दिन पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया का उदय एक पहेली की तरह कई सवालों के उत्तर तलाश रहा है। जनसंघ और भाजपा के संयुक्त इतिहास के सत्तर सालों में पार्टी के राजनीतिक बहाव में पहली बार व्यक्तिपरक विचलन अथवा खलल पैदा होने के आसार नजर …
Read More »‘चंबल’ के बीहड़ों में ‘अरावली’ की स्थापना से पिघलता ‘इको-सिस्टम’- उमेश त्रिवेदी
कांग्रेस से भाजपा के नेता बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के सुदर्शन और सजीले व्यक्तित्व में ’टाइगर’ की काली-पीली रेखाओं का उभार राजनीति में ऐसे खूंखार वायरस के संक्रमण का विस्तार है, जो लोकतंत्र की शालीनता के लिए प्राणलेवा साबित होने वाला है। लोकतांत्रिक मूल्य, सैद्धांतिक राजनीति और निष्ठाओं के तटबंधों को …
Read More »इतिहास के फड़फड़ाते पन्नों के आगोश में – पंकज शर्मा
‘थ्री- नॉट-थ्री बहुमत है तो क्या हुआ? क्या बहुसंख्या के इस तकनीकी तर्क की आड़ में हम आज की ज़मीनी असलियत को दरकिनार कर सकते हैं? ठीक है कि चुनाव पांच बरस के लिए होते हैं और केंद्र की सरकार को अभी पूरे चार साल और रायसीना-पहाड़ी पर जमे रहने …
Read More »कोरोना काल में सूखा बाढ़ मुक्ति का शुरू हो राष्ट्रीय अभियान- रघु ठाकुर
देर से ही सही भारत सरकार ने कोरोना और उसके संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये अपनी हठवादिता में कुछ कमी लाई है तथा कुछ बदलाव के संकेत दिये है। जो माँग हम लोग मार्च अन्त से कर रहे थे कि विशेष मजदूर ट्रेन के माध्यम से महानगरों में …
Read More »‘रोटी की चाह’ – ‘उस पथ पर देना फेंक,जिस पथ चले श्रमिक अनेक’- उमेश त्रिवेदी
औरंगाबाद में बदनापुर और करमाड़ के बीच शुक्रवार को तड़के एक मालगाड़ी की चपेट में आने वाले 16 प्रवासी मजदूरों की मौत की यह कहानी कोरोना की चपेट में कहीं सिसक-सिसक कर दम नहीं तोड़ दे… क्योंकि यह हादसा उऩ तमाम मंसूबो पर पानी फेर सकता है, जो न्यू-इंडिया के …
Read More »