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आलेख

सत्ताधीशो से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह का बन गया है अपराध –रघु ठाकुर

प्रधानमंत्री जी के 19 मार्च को कोरोना वायरस से बचाव के लिए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के आह्वान के बाद देश में कोरोना की चर्चा गंभीरता से बढी है,और साथ ही नए प्रश्न भी सामने आए हालांकि आज के दौर में सत्ताधीशो से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह और मानसिक प्रताड़ना …

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लोहिया ने सवाल पूछने से नही डरने की दी थी सीख – राज खन्ना

डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अपना जन्मदिन नही मनाते थे। उनके जन्मदिन 23 मार्च की तारीख़ अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की शहादत की तारीख है। अपने जन्मदिन पर इन शहीदों की याद उनके लिए अधिक महत्वपूर्ण थी। सिर्फ 57 साल की उन्हें उम्र मिली। गुजरे 53 साल बीत …

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दिवाकर मुक्तिबोध : छत्तीसगढ़ की हिंदी पत्रकारिता का चमकदार चेहरा – संजय द्विवेदी

छत्तीसगढ़ यानी वह प्रदेश जहां हिंदी पत्रकारिता की उजली परंपरा का प्रारंभ पं.माधवराव सप्रे ने सन् 1900 में ‘छत्तीसगढ़ मित्र’ के माध्यम से किया। उसके बाद की पीढ़ी में तमाम नायक सामने आते गए और अपनी यशस्वी भूमिका का निर्वहन करते रहे। हमारे समय के नायकों में एक नाम है …

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कमलनाथ और कांग्रेस का अंतिम सत्य – पंकज शर्मा

मध्यप्रदेश-प्रसंग ने भाजपा की जिस नंगई को खुलेआम उज़ागर किया है, उसे अब किसी भी हथेली से ढंकना मुमक़िन नहीं होगा। कमलनाथ की सियासी-कुंडली के अष्टम भाव में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया की वज़ह से अगर आगे-पीछे यही उनके प्रारब्ध में था तो मुझे तो लगता है कि जो हुआ, अच्छा …

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छत्तीसगढ़ में आयकर छापे का असर कितना — दिवाकर मुक्तिबोध

इन दिनों छत्तीसगढ़ की राजनीतिक फ़िज़ा गरमाई हुई है। मसला है दिल्ली से बेहद गुपचुप तरीक़े से राजधानी रायपुर पहुँचे आयकर विभाग के दस्ते द्वारा राज्य के दो दर्जन से अधिक रसूखदार लोगों के यहाँ छापे की कार्रवाई। राजनीतिक बवाल बशर्ते नहीं मचता यदि छापे राज्य शासन के कुछ उच्चाधिकारियों …

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छत्तीसगढ़ के बघेल सरकार की एक और परीक्षा -दिवाकर मुक्तिबोध

छ्त्तीसगढ़ में हाल ही मे सम्पन्न हुए नगर निकायों के चुनावों में कांग्रेस भले ही अपनी पीठ स्वयं थपथपा लें लेकिन हक़ीक़त यह है कि उसने विधान सभा चुनाव जैसा कोई कमाल नहीं किया। बीते वर्ष इन्हीं दिनों, दिसंबर में भूपेश बघेल के नेतृत्व में पार्टी ने अभूतपूर्व सफलता अर्जित …

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क्या पूर्वोत्तर के लिए जारी ‘एडवायजरी’ हिंदी राज्यों पर लागू नहीं होती – उमेश त्रिवेदी

देश के सत्ताधीशों के काम काज और कारगुजारियां इस बात की ताकीद हैं कि वो इन अंदेशों को लेकर कतई चिंतित नहीं है कि नागरिकता कानून के विरोध में गहराता जन आक्रोश भारत की सामाजिक समरसता के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर सकता है। उनकी कथनी और करनी में छलकने वाले …

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नागरिकता-कानून सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का नया औजार है – उमेश त्रिवेदी

पिछले एक पखवाड़े से लोगों के जहन में यह सवाल खदबदा रहा है कि मोदी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर सिर्फ मुसलमान ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों के हिन्दू आबादी भी इस कदर दहशदजदा क्यों हैं ? दहशत के दायरे शायद इसलिए बढ़ते जा रहे हैं कि झारखंड की चुनावी …

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उकता चुके देश का थका-हारा मुखिया – पंकज शर्मा

छह साल पहले नरेंद्र भाई मोदी ने भारतमाता की आंखों में एक ख़्वाब उंड़ेला था–अच्छे दिन आने वाले हैं। इस ख़्वाब की डोर अपनी उंगलियों की पोर से थामे देश ने नरेंद्र भाई को रायसीना-पहाड़ियों का महादेव बना दिया। मैं भी तब से, नरेंद्र भाई के जन्म के महज़ सात …

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संविधान दिवस पर संविधान की जीत – रघु ठाकुर

महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए चले घटनाक्रम के कई निहितार्थ है। जहाँ एक तरफ इस घटनाक्रम ने भाजपा का सत्ता लोलुप चेहरा सबके सामने ला दिया है, वहीं मोदी-शाह जोड़ी के मद की भी शुरूआत कर दी। वैसे भी महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव …

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