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आलेख

क्या चिकित्सा क्षेत्र में कालाधन रूकेगा ? डॉ. संजय शुक्ला

देश को कालाधन और भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगुवाई वाले एन.डी.ए. सरकार के 500 एवं 1000 रूपये का विमुद्रीकरण के फैसले के परिप्रेक्ष्य में अब अहम प्रश्न यह भी है कि क्या भविष्य में चिकित्सा जैसे पवित्र क्षेत्र में कालाधन का आवक रूकेगा? क्योंकि …

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पाठक-दर्शक को चाहिए पूरा सच – राज खन्ना

वह दौर बीत चुका है,जब अखबार में छपा नजीर के तौर पर पेश होता था। चौराहों-चौपालों के बहस- मुबाहिसे में अख़बार केंद्र में होते थे। अब देखिये। छपे शब्द छोड़िये। बोलती तस्वीरें भी शुबहे की नजर से देखी जा रही हैं। तकनीक और सूचना क्रांति ने ख़बरों की दुनिया बदल …

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काले धन के खिलाफ एक आभासी लड़ाई ! -संजय द्विवेदी

 जिस दौर में सुझाव को आलोचना और आलोचना को षडयंत्र समझा जा रहा है, ऐसे कठिन समय में भारतीय संस्कृति और उसकी सामासिकता के अनुगामियों को कुछ असुविधाजनक सवाल पूछने के जोखिम जरूर उठाने चाहिए।    नोटबंदी से हलाकान देश के सामने कई तथ्य हैं, जो हमें दुखी करते हैं। सात …

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किसानों को उत्पाद लुटाने की नौबत दुबारा न आए-दिवाकर मुक्तिबोध

यह कितनी विचित्र बात है कि छत्तीसगढ़ में कृषि के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों के लिए राज्य सरकार राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजी जाती रही है लेकिन राज्य के किसान एक तो ऋणग्रस्तता की वजह से आत्महत्या करते रहे हैं या फिर अपनी उपज मुफ्त में या औने-पौने दामों में बेचने …

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मैं ही, मैं हूं दूसरा कोई नहीं ! – संजय द्विवेदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देखकर अनेक राजनीतिक टिप्पणीकारों को इंदिरा गांधी की याद आने लगी है। कारण यह है कि भाजपा जैसे दल में भी उन्होंने जो करिश्मा किया है, वह असाधारण है। कांग्रेस में रहते हुए इंदिरा गांधी या सोनिया गांधी हो जाना सरल है। किंतु भाजपा में यह …

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भारतीय मन और प्रकृति के खिलाफ है कैशलेस-संजय द्विवेदी

हिंदुस्तान के दो बड़े नोटों को बंद कर केंद्र सरकार और उसके मुखिया ने यह तो साबित किया ही है कि ‘सरकार क्या कर सकती है।’ इस फैसले के लाभ या हानि का आकलन तो विद्वान अर्थशास्त्री करेगें, किंतु नरेंद्र मोदी कड़े फैसले ले सकते हैं, यह छवि पुख्ता ही …

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बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार की कवायद – डॉ. संजय शुक्ला

आबादी के हिसाब से दुनिया के दूसरे बड़े देश भारत में आजादी के छह दशक बाद भी बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति अत्यंत लचर है खासकर ग्रामीण भारत में।यह अतिष्योक्ति नहीं होगी कि आजाद भारत में सबसे ज्यादा प्रयोग शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी क्षेत्रों में ही हुआ है,लेकिन नतीजे …

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बस्तर ने देखा अब तक का सर्वाधिक बुरा दौर-दिवाकर मुक्तिबोध

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. रमन सिंह का तीसरे कार्यकाल का उत्तरार्ध लोकप्रियता की अब तक की जमा-पूंजी पर पानी फेरता नजर आ रहा है। बीते एक-दो वर्षों में चंद घटनाएं ऐसी हुई हैं जो यह अहसास कराती हैं कि वे प्रसिद्धि के शिखर से नीचे उतर रहे …

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क्या अब प्रतिभा पलायन पर अंकुश लगेगा ? – डा.संजय शुक्ला

हाल ही में अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा द्वारा एच-1बी वीजा से संबंधित एक नया विधेयक पेश किया गया है,जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि यह वीजा उन गैर अमेरिकियों को मिलेगा जिन्हें अमेरिकी अथवा विदेशी कंपनियों से अमेरिका में न्यूनतम 1 लाख 30 हजार डालर यानि लगभग 88 …

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राजनीति के बिगड़े बोल-संजय द्विवेदी

 भारतीय राजनीति में भाषा की ऐसी गिरावट शायद पहले कभी नहीं देखी गयी। ऊपर से नीचे तक सड़कछाप भाषा ने अपनी बड़ी जगह बना ली है। ये ऐसा समय है जब शब्द सहमे हुए हैं, क्योंकि उनके दुरूपयोग की घटनाएं लगातार जारी हैं।राजनीति जिसे देश चलाना है और देश को …

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