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आलेख

‘जियो-इंस्टीट्यूट’ प्रधानमंत्री मोदी के ‘कार्पोरेट-रुझान’ का प्रतीक – उमेश त्रिवेदी

भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक साम्राज्य रिलायंस इंडस्ट्री के मालिक मुकेश अंबानी भले ही दुनिया के चंद सबसे बड़े धनकुबेरों में शुमार हों, लेकिन सोशल क्रेडिबिलिटी अथवा सामाजिक-विश्वसनीयता के कुल जमा खजाने के मामले में वो रतन टाटा अथवा अजीम प्रेमजी जैसे उनसे उन्नीसे उद्योगपतियों से पीछे हैं। शायद इसीलिए …

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भाजपा साधुओं-तांत्रिकों के भरोसे और कांग्रेस बसपा के सहारे – अरुण पटेल

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ भले ही अब दो अलग-अलग राज्य हो गए हों लेकिन दोनों की राजनीतिक तासीर लगभग एक जैसी ही है। उनमें खास अन्तर इसलिए नहीं आया है क्योंकि दोनों ही जगह निर्णायक भूमिका में लगभग वे ही चेहरे सामने हैं जिन्होंने अविभाजित मध्यप्रदेश से अपनी राजनीति शुरू की …

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शबरी-प्रवृत्ति, मारीच-कथा और इम्तहान – पंकज शर्मा

अगले आम चुनाव से पहले अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो जाएगा या नहीं, नरेंद्र भाई मोदी, अमित भाई शाह और मोहन भागवत जानें। लेकिन हम सब इतना तो जानते ही हैं कि इन तीनों में से कोई भी उतना बड़ा राम-भक्त नहीं है, जितने बाबा तुलसीदास थे। …

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दिल्ली में संविधान की कसौटियां और राजनीतिक अड़ीबाजी – उमेश त्रिवेदी

‘बिग-बॉस’ नाराज हैं…इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली के ब्लॉग के जरिए भाजपा-सुप्रीमो की ओर से यह राजनीतिक एडवायजरी जारी हो गई है कि ‘दिल्ली के बॉस’ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार के साथ केन्द्र सरकार का सलूक क्या और कैसे रहने वाला है ? जेटली ने सुप्रीम कोर्ट की गौरतलब …

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‘आप’ के ‘बॉस’ बनने से कुछ नही होगा, क्योंकि ‘बिग-बॉस’ नाराज हैं – उमेश त्रिवेदी

भाजपा, कांग्रेस सहित आम आदमी पार्टी के सभी विरोधियों ने तय कर लिया है कि वो दिल्ली-सरकार और उप राज्यपाल के बीच अधिकारों की जंग में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को उन व्याख्याओं के साथ नहीं पढ़ेंगे, जो संविधान पीठ के पांच जजों की मंशाओं को व्यक्त करती है। फैसले …

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कट्टरता के ‘हिम-शिखरों’ से भाजपा के बेस-कैम्पों पर भी खतरा – उमेश त्रिवेदी

कट्टरता के हिमशिखरों के विखंडन ने अब भारतीय जनता पार्टी के बेस-कैम्पों में निर्मित उन हवन-कुंडों को तबाह करना शुरू कर दिया है, जिनमें आहुति देकर इन दानव-प्रवृत्तियों का आव्हान किया गया था। नफरत की भीड़ भरी आंधी के साये भाजपा के दरवाजे पर भी दस्तक देने लगे हैं। सात-आठ …

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नजरबंदी के बीच स्विस बैंक में कैसे पहुंचे 7000 करोड़ ?-उमेश त्रिवेदी

भारत के राजनीतिक अखाड़े में काले धन के बारे में स्विस बैंक की एक रिपोर्ट को लेकर राजनेताओ में एक मर्तबा फिर से जोर-आजमाइश शुरू हो गई है। देश के वित्तीय हालात कह रहे हैं कि आर्थिक मोर्चे पर मोदी-सरकार के पांव फिसलने लगे हैं। वित्तीय प्रबंध के मामले में …

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आपातकाल भारत की असली प्रेत-बाधा नहीं है – पंकज शर्मा

आपातकाल की 43वीं सालगिरह के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी, उनकी आंख के इशारे पर अपने हाथ खड़े कर देने वाले मंत्रियों और अमित शाह की पूरी भारतीय जनता पार्टी ने इंदिरा गांधी को हिटलर घोषित कर दिया। चार साल से हिटलर से हो रही अपनी तुलना का यह प्रतिकार …

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संत कबीर के प्रति भाजपा के ‘राजनीतिक-ममत्व’ के मायने – उमेश त्रिवेदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राम की अयोध्या से तुलसी की राम-धुन के साथ बनारस में कबीर की निर्गुण भजनों की जुगलबंदी को सुनिश्‍चित करके उप्र में भाजपा ने लोकसभा चुनाव का आगाज कर दिया है। उप्र में भाजपा के चुनाव-प्रबंधों को अमलीजामा पहनाने के लिए मोदी ने मगहर में कई …

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नायडूजी, इमरजेंसी के पाठ में इंदिरा की खूबियों को कैसे पढ़ेंगे? – उमेश त्रिवेदी

26 जून,1975 को लागू आपातकाल की अनगिन कही-अनकही, सही-गलत और कपोल-कल्पित कहानियों के राजनीतिक-संस्करणों के ताजा प्रकाशन और प्रसारण में ’हिटलर’ और ’औरंगजेब’ जैसे पात्रों की एन्ट्री मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व की मनोदशा और मानसिक दीवालियापन के इंडेक्स को रेखांकित करती है। अपने चार साल के शासनकाल और उपलब्धियों पर आत्ममुग्ध …

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