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आलेख

चन्द्रशेखर की सरकार क्यों बनी ; क्यों गिरी ?- राज खन्ना

   (पुण्यतिथि 08 जुलाई पर विशेष) चन्द्रशेखर की पहचान उनके बेबाक- बेलौस लहजे से जुड़ी हुई थी। एक निर्भीक-निडर नेता जिसकी अपनी शैली थी और अपना अंदाज। पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और फिर कांग्रेस में रहते हुए राजनीतिक लाभ-हानि का जोड़-घटाव उन्हें इस अंदाज़ से अलग नही कर पाया। जो …

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नई भाजपा का ‘गांधी’, ‘समाजवादी’ नहीं रहा, वह सिर्फ ‘बनिया’ हैं…- उमेश त्रिवेदी

भाजपा के राजनीतिक आख्यानों में सौ-सवा सौ दिन पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया का उदय एक पहेली की तरह कई सवालों के उत्तर तलाश रहा है। जनसंघ और भाजपा के संयुक्त इतिहास के सत्तर सालों में पार्टी के  राजनीतिक बहाव में पहली बार व्यक्तिपरक विचलन अथवा खलल पैदा होने के आसार नजर …

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‘चंबल’ के बीहड़ों में ‘अरावली’ की स्थापना से पिघलता ‘इको-सिस्टम’- उमेश त्रिवेदी

कांग्रेस से भाजपा के नेता बने ज्योतिरादित्य सिंधिया के सुदर्शन और सजीले व्यक्तित्व में ’टाइगर’ की काली-पीली रेखाओं का उभार राजनीति में ऐसे खूंखार वायरस के संक्रमण का विस्तार है, जो लोकतंत्र की शालीनता के लिए प्राणलेवा साबित होने वाला है। लोकतांत्रिक मूल्य, सैद्धांतिक राजनीति और निष्ठाओं के तटबंधों को …

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इतिहास के फड़फड़ाते पन्नों के आगोश में – पंकज शर्मा

‘थ्री- नॉट-थ्री बहुमत है तो क्या हुआ? क्या बहुसंख्या के इस तकनीकी तर्क की आड़ में हम आज की ज़मीनी असलियत को दरकिनार कर सकते हैं? ठीक है कि चुनाव पांच बरस के लिए होते हैं और केंद्र की सरकार को अभी पूरे चार साल और रायसीना-पहाड़ी पर जमे रहने …

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कोरोना काल में सूखा बाढ़ मुक्ति का शुरू हो राष्ट्रीय अभियान- रघु ठाकुर

देर से ही सही भारत सरकार ने कोरोना और उसके संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये अपनी हठवादिता में कुछ कमी लाई है तथा कुछ बदलाव के संकेत दिये है। जो माँग हम लोग मार्च अन्त से कर रहे थे कि विशेष मजदूर ट्रेन के माध्यम से महानगरों में …

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‘रोटी की चाह’ – ‘उस पथ पर देना फेंक,जिस पथ चले श्रमिक अनेक’- उमेश त्रिवेदी

औरंगाबाद में बदनापुर और करमाड़ के बीच शुक्रवार को तड़के एक मालगाड़ी की चपेट में आने वाले 16 प्रवासी मजदूरों की मौत की यह कहानी कोरोना की चपेट में कहीं सिसक-सिसक कर दम नहीं तोड़ दे… क्योंकि यह हादसा उऩ तमाम मंसूबो पर पानी फेर सकता है, जो न्यू-इंडिया के …

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ऐसी प्रजा कहां मिलती, नरेंद्र भाई ! – पंकज शर्मा

मैं ऐसे बहुत-से लोगों को जानता हूं, जो छह साल पहले मानते थे कि भारत को नरेंद्र भाई मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री मिल ही नहीं सकता है और अब मानते हैं कि वे ग़लत साबित हो गए हैं। मैं ऐसे भी बहुत-से लोगों को जानता हूं, जो एक साल पहले …

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‘घर-वापसी’ के सवालों में घिरा ‘पीएम केअर्स फंड’ का इस्तेमाल – उमेश त्रिवेदी

कोविड-19 के दरम्यान तबलीगी जमात, सेना की पुष्प वर्षा और राष्ट्रीय एकता की मजबूती से जुड़े घटनाक्रमों के बीच हाशिए पर खड़े घर वापसी के लिए परेशान करोड़ों प्रवासी मजदूर एकाएक राजनीति और मीडिया के मेन-स्ट्रीम में सुर्खियां बटोरने लगे हैं। सबब यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने …

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विभाजन और महात्मा गांधी – राज खन्ना

गांधी जी बैठक में नही थे। पर कार्यवाही में छाए हुए थे। देश की किस्मत का फैसला लिया जा चुका था। अब फिक्र इस फैसले पर गांधी जी की प्रतिक्रिया की थी। वायसराय माउंटबेटन चिंतित थे। गांधी जी खिलाफ़ गए, तो हालात काबू के बाहर चले जायेंगे। 3 जून 1947 …

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कोरोना की कराहों में सेना के जरिए ‘वाह-वाह’ की तलाश…- उमेश त्रिवेदी

देश में कोरोना से लड़ने वाले भारत के कर्मवीर योद्धाओं के वंदन अभिनंदन के प्रसंग में भारतीय सेना की गैरजरूरी पहल के बाद लोगों के जहन में सेना के राजनीतिकरण से होने वाले नुकसान की आशंकाएं फिर आकार लेने लगी हैं। मौजूदा हालात में सेना की सलामी का गैर जरूरी …

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