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आलेख

लॉक डाउन-2: कोरोना के साथ आर्थिक-मंदी के रोगाणु भी सक्रिय – उमेश त्रिवेदी

भारत, कोविड-19 से लड़ाई के दूसरे दौर की शुरूआत में, जबकि देश इक्कीस दिनों के लॉकडाउन-1 की भली-बुरी मजबूर यादों के साथ लॉकडाउन-2 के मुहाने पर खड़ा है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 14 अप्रैल को सबेरे 10 बजे केन्द्र सरकार की नई रणनीति का खुलासा करने वाले हैं। कोरोना-एपीसोड का सिलसिला …

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कोरोनाः धरती को महज़ सैरग़ाह समझने का नतीजा- पंकज शर्मा

मैं बचूंगा तो विचार बचेगा, विचारधारा बचेगी। पहले ख़ुद तो बच जाऊं, तब जनतंत्र का सोचूं, वाम-दक्षिण का सोचूं। यह कोरोना ऐसी आफ़त ले कर आया है कि सब की सिट्टी-पिट्टी गुम है। वरना ज़रा-सा कुछ हुआ नहीं कि अपने-अपने जुमलों के लट्ठ ले कर सब नरेंद्र भाई मोदी के …

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सरदार पटेलःजिनकी नेहरु भी करते थे पूरी कद्र और इज्ज़त – राज खन्ना

विभाजन की पीड़ा थी। पर उसकी अनिवार्यता और जिम्मेदारी कुबूल करने को लेकर वह दो टूक थे। 11 अगस्त 1947 को सरदार बल्लभ भाई पटेल ने एक सार्वजनिक सभा में कहा,” लोग कहते हैं कांग्रेस ने देश का विभाजन कर दिया। यह सत्य है। पर किसी भय या दबाव के …

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कोरोना के कहर में ‘न्यूज-इवेंट’ और ऐतिहासिकता की तलाश – उमेश त्रिवेदी

कोरोना महामारी का भयावह प्रकोप आजाद भारत की उन गिनी-चुनी घटनाओं में शुमार है, जिससे निपटने के राजनीतिक और प्रशासनिक इरादों को ऐतिहासिकता की कठिन कसौटियों पर बेरहमी से जांचा- परखा जाएगा। देशकाल और परिस्थितियां राजनीतिक नेतृत्व को इतिहास में अपना मुकाम बनाने का मौका देती हैं। आजादी के बाद …

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चीनी- कविता में छलकता मजदूरों का दर्द और कोरोना का पलायन – उमेश त्रिवेदी

दुनिया के 130 देशों को अपने शिकंजे में जकड़े कोविड-19 की पैदाइश चीन की है और नीचे लिखी कविता जिस सू लिज्ही ने लिखी है, एक मजदूर के रूप में उसका मुकद्दर भी चीन की राजनीतिक-व्यवस्था ने ही लिखा था। 14 जून 2014 को सू लिज्ही ने चीन के मशहूर …

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‘बंद गली के आखिरी मकान’ में कोरोना व रोशनी की जद्दोजहद – उमेश त्रिवेदी

बंद गली का आखरी मकान -‘दायीं ओर कच्ची दीवार, जिसमें बीच-बीच में गोबर का लेप उघड़ गया था। बीच में पिरोड से पुता वो आला, जिसके ऊपर तक ढिबरी के धुंए की काली लकीर और नीचे बहे हुए तेल की धारा का दाग। बायीं ओर दीवार नीची थी, खपरैल झुग …

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इंदिरा जी और 1971 का युद्ध- राज खन्ना

बीच में बारह सौ मील की भौगोलिक दूरी। पर दूरियां तो और भी थीं। बोली। भाषा। पहनावा। खानपान। रहन-सहन। रीति-रिवाज। सब जुदा थे। जोड़ने का सिर्फ़ एक धागा था। एक मजहब। उधर नफ़रत की भट्ठी की आंच मन्द हुई। इधर यह धागा भी बेमानी साबित हुआ। ढाई दशक में भारतीय …

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मध्य प्रदेश में कमल खिलाने के चक्कर में मोदी सरकार ने लाकडाउन में की देरी-विश्वनाथ चतुर्वेदी

लॉकडाउन और देश की राजनीति पर पिछले 15 दिनों के घटनाक्रम पर नज़र डालें तो आप पाएंगे की जब चीन, इटली और अमेरिका कोरोना वायरस से निपटने में लगे हुए थे और पूरी दुनिया कोरोना के संक्रमण से बचने के उपाय ढूंढ रही थी, तब भारतीय जनता पार्टी के मध्य …

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अवसाद के समय में पालनहार से गुहार- पंकज शर्मा

हे प्रभु! क्या ग़लती हो गई हम पृथ्वी-वासियों से? क्या हम से राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और धार्मिक संसार की भौतिक आराध्य-मूर्तियों के चयन में ग़लती हो गई?क्या हम से अपनी धरती को नाहक ही स्पर्धा, स्वार्थ और निजी सनकपूर्ति की दिशा में धकेल देने की ग़लती हो गई?कुछ तो …

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सत्ताधीशो से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह का बन गया है अपराध –रघु ठाकुर

प्रधानमंत्री जी के 19 मार्च को कोरोना वायरस से बचाव के लिए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू के आह्वान के बाद देश में कोरोना की चर्चा गंभीरता से बढी है,और साथ ही नए प्रश्न भी सामने आए हालांकि आज के दौर में सत्ताधीशो से प्रश्न पूछना राष्ट्रद्रोह और मानसिक प्रताड़ना …

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