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आलेख

इतिहास के फड़फड़ाते पन्नों के आगोश में – पंकज शर्मा

‘थ्री- नॉट-थ्री बहुमत है तो क्या हुआ? क्या बहुसंख्या के इस तकनीकी तर्क की आड़ में हम आज की ज़मीनी असलियत को दरकिनार कर सकते हैं? ठीक है कि चुनाव पांच बरस के लिए होते हैं और केंद्र की सरकार को अभी पूरे चार साल और रायसीना-पहाड़ी पर जमे रहने …

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कोरोना काल में सूखा बाढ़ मुक्ति का शुरू हो राष्ट्रीय अभियान- रघु ठाकुर

देर से ही सही भारत सरकार ने कोरोना और उसके संक्रमण को फैलने से रोकने के लिये अपनी हठवादिता में कुछ कमी लाई है तथा कुछ बदलाव के संकेत दिये है। जो माँग हम लोग मार्च अन्त से कर रहे थे कि विशेष मजदूर ट्रेन के माध्यम से महानगरों में …

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‘रोटी की चाह’ – ‘उस पथ पर देना फेंक,जिस पथ चले श्रमिक अनेक’- उमेश त्रिवेदी

औरंगाबाद में बदनापुर और करमाड़ के बीच शुक्रवार को तड़के एक मालगाड़ी की चपेट में आने वाले 16 प्रवासी मजदूरों की मौत की यह कहानी कोरोना की चपेट में कहीं सिसक-सिसक कर दम नहीं तोड़ दे… क्योंकि यह हादसा उऩ तमाम मंसूबो पर पानी फेर सकता है, जो न्यू-इंडिया के …

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ऐसी प्रजा कहां मिलती, नरेंद्र भाई ! – पंकज शर्मा

मैं ऐसे बहुत-से लोगों को जानता हूं, जो छह साल पहले मानते थे कि भारत को नरेंद्र भाई मोदी से बेहतर प्रधानमंत्री मिल ही नहीं सकता है और अब मानते हैं कि वे ग़लत साबित हो गए हैं। मैं ऐसे भी बहुत-से लोगों को जानता हूं, जो एक साल पहले …

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‘घर-वापसी’ के सवालों में घिरा ‘पीएम केअर्स फंड’ का इस्तेमाल – उमेश त्रिवेदी

कोविड-19 के दरम्यान तबलीगी जमात, सेना की पुष्प वर्षा और राष्ट्रीय एकता की मजबूती से जुड़े घटनाक्रमों के बीच हाशिए पर खड़े घर वापसी के लिए परेशान करोड़ों प्रवासी मजदूर एकाएक राजनीति और मीडिया के मेन-स्ट्रीम में सुर्खियां बटोरने लगे हैं। सबब यह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने …

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विभाजन और महात्मा गांधी – राज खन्ना

गांधी जी बैठक में नही थे। पर कार्यवाही में छाए हुए थे। देश की किस्मत का फैसला लिया जा चुका था। अब फिक्र इस फैसले पर गांधी जी की प्रतिक्रिया की थी। वायसराय माउंटबेटन चिंतित थे। गांधी जी खिलाफ़ गए, तो हालात काबू के बाहर चले जायेंगे। 3 जून 1947 …

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कोरोना की कराहों में सेना के जरिए ‘वाह-वाह’ की तलाश…- उमेश त्रिवेदी

देश में कोरोना से लड़ने वाले भारत के कर्मवीर योद्धाओं के वंदन अभिनंदन के प्रसंग में भारतीय सेना की गैरजरूरी पहल के बाद लोगों के जहन में सेना के राजनीतिकरण से होने वाले नुकसान की आशंकाएं फिर आकार लेने लगी हैं। मौजूदा हालात में सेना की सलामी का गैर जरूरी …

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दर्शकों की ‘रियल-लाइफ’ में ‘रील-लाइफ’ का रोमांच थे इरफान… – उमेश त्रिवेदी

‘इरफान का पूरा नाम साहबजादे ’इरफान’ अली खान था और उनके पिता कहा करते थे कि वह पठान-परिवार मे पैदा हुआ ब्राम्हण है…वो शाकाहारी थे, उनके मन की हमदर्दी, दया और करूणा उन्हें शिकार करने से रोकती थी…।’ इरफान खान से संबंधित ऐसी अनेक जानकारियों से दुनिया भर की वेबसाइट्स, …

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‘नास्त्रेदमस’ के मोदी और ‘सतयुग’ में ‘सियासी-सत्कर्म’(?) की कहानी – उमेश त्रिवेदी

विश्‍व-गुरू’ और ’वैश्‍विक आर्थिक शक्ति’ बनने के लिए आतुर भारत के प्रारब्ध को लेकर लोगों के मन में उत्सुकता स्वाभाविक है। इतिहास-भूगोल, वेद-पुराण, भृगु-संहिता, ज्योतिष शास्त्र के साथ पिंजरे में बंद तोता-मैना की प्रश्‍नावलियों तक, महान भारत की तलाश अर्से से जारी है। सोलहवी शताब्दी फ्रांस में जन्मे विश्‍वविख्यात भविष्यवक्ता …

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कोरोना के बाद की दुनिया कैसी होगी? –रघु ठाकुर

कोरोना के वैश्विक संकट से समूची दुनिया में बहस शुरू हुई है और इस महामारी के विश्व पर क्या प्रभाव हो सकते हैं ? इसकी भी चर्चा शुरू हो रही है।भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने भी भविष्य को लेकर कुछ बिंदु अपने लेख के माध्यम से रखे …

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