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आलेख

जेएनयू के भारत विरोधी ! – संजय द्विवेदी

यह एक यक्ष प्रश्न है कि इतने बड़े विचारकों, विश्व राजनीति-अर्थनीति की गहरी समझ, तमाम नेताओं की अप्रतिम ईमानदारी और विचारधारा के प्रति समर्पण के किस्सों के बावजूद भारत का वामपंथी आंदोलन क्यों जनता के बीच स्वीकृति नहीं पा सका ? अब लगता है, भारत की महान जनता इनको पहले से ही पहचानती थी, इसलिए …

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’’प्रभु जी का थ्री एम रेल बजट’’ – रघु ठाकुर

रेलमंत्री सुरेश प्रभु का 2016-17 का रेल बजट आ चुका है,इस रेल बजट के बारे में समाचार पत्रों में आम तौर पर जो लेख आए है वे रेल बजट के पक्ष में है,और यह कहा जा रहा है कि यह लोक लुभावन नही बल्कि व्यावहारिक रेल बजट है।मेरे एक मित्र …

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शक्ति को सृजन में लगाएं मोदी-संजय द्विवेदी

पिछले कुछ दिनों से सार्वजनिक जीवन में जैसी कड़वाहटें, चीख-चिल्लाहटें, शोर-शराबा और आरोप-प्रत्यारोप अपनी जगह बना रहे हैं, उससे हम देश की ऊर्जा को नष्ट होता हुआ ही देख रहे हैं। भाषा की अभद्रता ने जिस तरह मुख्य धारा की राजनीति में अपनी जगह बनाई है, वह चौंकाने वाली है। …

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छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को मंत्री पलीता – दिवाकर मुक्तिबोध

 ऐसा शायद छत्तीसगढ़ में ही होता है,जब एक मंत्री अपने विभाग के आईएफएस अफसरों एवं अन्य अधिकारियों के खिलाफ राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ई.ओ.डब्ल्यू) एवं एंटी करप्शन ब्यूरो (एसीबी) के छापे का विरोध करता हो तथा उसे विद्वेषपूर्ण कार्रवाई बताता हो। वनमंत्री महेश गागड़ा ने अपने तीन आईएफएस अफसरों …

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शिक्षा परिसर राजनीति मुक्त नहीं, संस्कार युक्त हों -संजय द्विवेदी

हमारे कुछ शिक्षा परिसर इन दिनों विवादों में हैं। ये विवाद कुछ प्रायोजित भी हैं, तो कुछ वास्तविक भी। विचारधाराएं परिसरों को आक्रांत कर रही हैं और राजनीति भयभीत। जैसी राजनीति हो रही है, उससे लगता है कि ये परिसर देश का प्रतिपक्ष हैं। जबकि यह पूरा सच नहीं है। …

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पलायन के अभिशाप से मुक्ति कब ? -डा.संजय शुक्ला

छत्तीसगढ़ विधानसभा के हालिया बजट सत्र के दौरान राज्य सरकार द्वारा एक सवाल के जवाब में बताया गया कि आंकड़ों के अनुसार सन् 2012 से 2015 तक लगभग 96 हजार लोगों ने राज्य से पलायन किया है। 2015 में सर्वाधिक 46 हजार लोगों ने रोजगार की तलाश में दिगर प्रदेशों …

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हम और हमारा राष्ट्रवाद-संजय द्विवेदी

देश में इन दिनों राष्ट्रवाद चर्चा और बहस के केंद्र में है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम भारतीय राष्ट्रवाद पर एक नई दृष्टि से सोचें और जानें कि आखिर भारतीय भावबोध का राष्ट्रवाद क्या है?‘राष्ट्र’ सामान्य तौर पर सिर्फ भौगोलिक नहीं बल्कि ‘भूगोल-संस्कृति-लोग’ के तीन तत्वों से बनने …

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’’मीडिया निर्माण का दूसरा केजरीवाल’’- रघु ठाकुर

हमारे देश में आजकल बुद्धिजीवियों की बहस अमूमन अबौद्धिक और पक्षपात पूर्ण होती है।पिछले दिनों जे.एन.यू. को लेकर जिस प्रकार का विभाजन और आरोप प्रत्यारोप प्रचार तंत्र में छाया रहा है वह करीब-करीब इसी धारणा को पुष्ट करता है। दरअसल जे.एन.यू के बारे में पिछले दिनों जिस प्रकार के हमलो …

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बौद्धिक वर्ग से रिश्ते सुधारे मोदी सरकार – संजय द्विवेदी

अपने कार्यकाल के दो साल पूरे करने के बाद नरेंद्र मोदी आज भी देश के सबसे लोकप्रिय राजनीतिक ब्रांड बने हुए हैं। उनसे नफरत करने वाली टोली को छोड़ दें तो देश के आम लोगों की उम्मीदें अभी टूटी नहीं हैं और वे आज भी मोदी को परिणाम देने वाला …

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जोगी का दांव, उल्टा या सीधा-दिवाकर मुक्तिबोध

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने प्रदेश कांग्रेस के लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है। उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर नई पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया है। प्रदेश कांग्रेस में संगठन खेमे और जोगी खेमे के बीच पिछले कई महीनों से चली आ रही रस्साकशी एवं शाब्दिक …

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